रविवार का दिन था। दोपहर का समय था। खाना खाने के बाद अखबार से गुफ्तगू कर रहा था। बीच-बीच में नींद भी अपने आने का संदेश झपकियों से भेज रही थी, पर बॉलिवुड और शहर की चटपटी खबरें मुझे जगाने में सहयोग कर रही थीं।
तभी मेरा 7वीं कक्षा में पढ़ने वाला लड़का कमरे में आया और कहने लगा –
“डैड (जी हां, अब बाउजी, पिताजी और पापा शब्द गुज़रे ज़माने की बात हो गई है), आज तो मज़ा आ गया।”

मैंने पूछा –
“क्या हुआ? कोई प्रतियोगिता जीती क्या तुमने?”
उसने कहा –
“नहीं डैड, actually आज रिया ने हां कर दी, अब वो मेरी गर्लफ्रेंड है।”
उसकी ये बात सुनकर थोड़ी देर तक तो मुझे समझ नहीं आया, फिर अपने आप को संभालते हुए मैंने कहा –
“बेटा, ये उम्र पढ़ने की है, गर्लफ्रेंड बनाने की नहीं।”
उसने कहा –
“ओ डैड, आप भी न! ज़माने के साथ चलिए। मेरे क्लास में तो हर लड़के की गर्लफ्रेंड है। चलिए, मैं अभी जा रहा हूं, रिया के साथ डेट है आज।”
डेट… हमारे ज़माने में तो इसका अर्थ सिर्फ तारीख होता था।
मेरे बेटे के जाते ही मुझे अपने दिन याद आ गए। वो रामू की दुकान पर बैठकर चाय पीते थे। लड़कियों का कॉलेज पास ही था। वहां से जब लड़कियां निकलती थीं, तो एक-दूसरे से बस इतना कहते थे –
“वो नीली वाली मेरी, वो पीली वाली तेरी, अरे आज वो तेरी हरी वाली नहीं आई।”
जी हां, यही तरीका था हमारा। और नाम हम इसलिए नहीं लेते थे क्योंकि नाम पता ही नहीं थे।
बस रोज़ दूर से बैठकर देखते थे और फिर घर चले जाते थे।
वैसे ऐसा नहीं था कि हमने नाम-पता करने की कोशिश नहीं की थी, पर नाम-पता करना उस वक्त जंग जीतने जैसा होता था।
एक बार रामू की दुकान पर सुभाष मुझसे बोला –
“यार कमलेश, हम डरपोक हैं, एक लड़की का नाम नहीं पूछ सकते।”
मैंने कहा –
“बात डरने की नहीं है, पर कहीं ऐसा न हो कि नाम पूछने के चक्कर में कोई पंगा हो जाए।”
सुभाष ने कहा –
“पंगे मैं देख लूंगा। तू बता, नाम पूछ लेगा क्या?”
मैंने कहा –
“हां-हां, क्यों नहीं! तू बस पंगे देख लेना, तुझे कल नाम क्या, पूरा पता ला दूंगा।”
रात को जब सोने गया तो लगा, मैंने वादा तो कर लिया है, पर मैं जानता था कि ये किसी का क़त्ल करने से कम खतरनाक काम नहीं है।
खैर, मैं सो गया। सुबह उठा और तैयार होकर निकलने की तैयारी करने लगा। मां से कह दिया था कि दही और शक्कर तैयार रखना, आज मेरा एक ज़रूरी टेस्ट है।
आज भगवान के सामने भी 10 मिनट ज़्यादा खड़ा था और उम्मीद कर रहा था कि शायद भगवान प्रकट होंगे और मुझे उस लड़की का नाम बता देंगे।
हाँ, मैंने आपको बताया नहीं – मुझे उस लड़की का नाम पता करना था, जिसे मैं चाहता था। अब ये प्यार था या नहीं, पता नहीं। मेरे लिए तो बस वो मेरी नीली वाली थी।
खैर, मैं चल दिया जंग पर, और दुकान पर पहुंचते ही मेरे दोस्तों ने मेरा ऐसे स्वागत किया जैसे आज शहीद होने वाला हूं।
थोड़ी देर में कॉलेज खुलने का वक्त हुआ। लड़कियों का आना शुरू हुआ, और फिर दूर से वो आई, जिसका मुझसे ज़्यादा इंतज़ार तो मेरे दोस्तों को था।
मेरे दोस्तों ने इशारा किया, और मैं समझ गया कि अब बकरा कटने वाला है। मेरे दोस्त भी –
“कर चले हम फिदा जानो-तन साथियो…”
ये गाना गाकर मेरा हौसला बढ़ा रहे थे।
मैं धीरे-धीरे नीली वाली के पास गया। उसके आते ही मैंने कहा –
“नमस्ते।”
उसने कहा –
“जी, आप कौन?”
मैंने कहा –
“मैं कमलेश।”
और मैं ही जानता हूं कि चार अक्षर का ये नाम लेने में मुझे 5 मिनट क्यों लगे।
उसने कहा –
“जी कहिए।”
मैंने कहा –
“जी… वो… मैं और मेरे दोस्त…”
मैं आगे कुछ कहता, उसके पहले ही उसने कहा –
“कहीं आप वो संस्था से तो नहीं हैं जो युवा लोगों को जोड़कर राजनीति में ले आती है?”
मैंने कहा –
“नहीं।”
उसने कहा –
“माफ़ कीजिए, आपके हाथ में रजिस्टर देखकर लगा मुझे।”
उसकी इस बात ने मुझे वो दिशा दिखाई जिसकी मुझे तलाश थी।
मैंने कहा –
“नहीं, हम लोग तो गरीब बच्चों की मदद करते हैं। खाली वक्त में उन्हें पढ़ाते हैं। तो कुछ छोटी लड़कियों को पढ़ाने के लिए हमें कुछ कॉलेज की लड़कियों की ज़रूरत थी। तो क्या आप मदद करेंगी? और हां तो आप अपना नाम और पता इसमें लिख दीजिए।”
ये बात कहने के बाद ऐसा लगा जैसे मैंने AK-47 से लगातार सारी गोलियां चला दी हों।
वो मुस्कुराई और अपना नाम लिखा। उसका नाम रोशनी यादव था।
खैर, उसके जाने के बाद मैं दोस्तों की तरफ बढ़ा और ऐसा लग रहा था जैसे मैंने विश्व कप जीत लिया हो।
मैं अपने अतीत में खोया था और अचानक एक आवाज़ ने मुझे वापस वर्तमान में धकेल दिया।
“डैड… डैड…!”
मैंने आंखें खोली तो सामने मेरा लड़का था, पर वो अकेला नहीं था। उसके साथ कोई और भी थी।
जी हां, थी। उसने कहा –
“डैड, ये मेरी गर्लफ्रेंड है – रिया।”
रिया – “हेलो अंकल, हाउ आर यू?”
मैं – “ठीक हूं बेटा।”
बस इससे ज़्यादा कुछ नहीं कह पाया मैं और सोचा –
अगर मैं ऐसे रोशनी को घर लाता, तो शायद अभी आपको ये कहानी नहीं सुना पाता।
तो ये थी बदलते दौर की कहानी। उम्मीद करता हूं आप सबको ये पसंद आई होगी।
चिराग जोशी
(इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। इनका किसी भी जीवित और मृत व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है। अगर ऐसा होता है तो ये मात्र एक संयोग ही कहा जाएगा।)
✅ ये कहानी मेरी किताब PCO (पी.सी.ओ) में भी प्रकाशित है और इस पर उज्जैन में नाटक भी मंचित हुआ है।
90 s ke daur yaadgaar tha thode masumiyat thode immaandar the .
Achhe khaane sunnae aapne ase hi likhte rahiye
shukriya dr sahab