Farzi Baatein

Article on Life | अंत ही आरंभ है

मॉ की गोद मे जब मे सिसकिया लेकर रो रहा था, आंखो मे आंसू कम आवाज़ मे ज़ोर ज्यादा था । तभी अचानक एक खिलौने ने मेरी आवाज़ को एक मुस्कुराहट मे बदल दिया और अगले पल मे वो खिलौना मेरे हाथो मे आ गया । मैं बडे आराम से खिलौने से खेल रहा था । तभी किसी ने मेरे हाथ से उस खिलौने को छिन लिया । मुझे लगा था के ये अंत है पर अंत ही आरंभ है

दिल मे मैंने ठान लिया के जिस दिन घुटनो के बल चल लूंगा उस खिलौने को अपने हाथो मे फिर ले लूंगा । आखिर एक दिन मैं घुटनो के बल चलने लगा और जाकर उस खिलौने को मैंने थाम लिया । तभी वो खिलौना मेरे हाथो से फिर किसी ने छिन लिया और दौड कर वो ओझल हो गया मेरी आंखो के आगे से । मुझे लगा था के ये अंत है पर अंत ही आरंभ है । कुछ वक्त बाद मैं चलने और दौडने लगा । दौड कर मैंने फिर उस खिलौने को पा लिया और इस बार मैं बहुत देर तक उस खिलौने के साथ खेलते रहा । परंतु ये देर भी ज्यादा देर तक ना रुकी और फिर मेरे हाथो से खिलौने को छिन कर एक हाथ मे किताब और एक हाथ मे पेंसिल पकडा दी । मुझे लगा था के ये अंत है पर अंत ही आरंभ है । 

मैं कभी पेंसिल को तो कभी पेन को घिस-घिस कर आगे बढता गया और जब कुछ सालो मे 12 सीढीया चढकर शिखर पर पहुचा तो लगा के अबतक जो रबर सिर्फ मेरे लिखे हुये को मिटा देता था । ठीक उसी प्रकार शायद अब मैं भी अपने हिसाब से अपनी किस्मत लिख सकूंगा । पर तभी कही से कई सारी आवाजो से बस एक ही सवाल मुझे हर पल पूछा गया ।

सवाल था  “ अब आगे का क्या सोचा है “ । मेरे पास इस सवाल का एक ही ज़वाब था – “ बस अब जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता हू “। समाज़ ने बडे बडे सलाहकारो ने अपने तरीके से मुझको समझाया परंतु मैं समझा नही तो फिर आखिर मे आंखो से ब्रहमाअस्त्र  चलाया ।  मेरे सपनो को मेरी ही आंखो से छिन कर अपने सपनो को उसमे बैठा दिया । मुझे लगा था के ये अंत है पर अंत ही आरंभ है ।उनके सपनो को पूरा करते करते मैं अपने सपने को भी बीच बीच मे याद कर लिया करता था और जैसे मेरी मॉ ने मुझे बडा किया था ,ठीक उसी तरह मैं भी अपने सपने को धीरे-धीरे बडा करने लगा था । वक्त के साथ वो दौर भी आया जब दिमाग से ज्यादा दिल की चलने लगी और इसी दौर मे ये भी लगा के काश के वक्त अब यही ठहर जाये और उस वक्त मे ना अंत के बारे मे सोचता था ना आरंभ के बारे मे ,बस एक ठहराव सा आ गया था ।

खैर दिल से सोचने के नुकसान भी उठाये और जब मुझे लगने लगा था के इस आरंभ का अंत ना हो तभी उसने कह दिया के “आरंभ ही अंत है”  ।

इस दौर के बाद लगा के बस अब तो मैंने उनके सपनो को पूरा किया है अब मैंने अपने सपने को फिर से जीना शुरु किया ।  लेकिन समाज के सलाहकार कहा मानने वाले थे थमा दिया उन्होने मेरे हाथो मे एक अंजान सा हाथ । ये उन समाज के सलाहकारो की एक ही सलाह थी जो मुझे पसंद आयी थी क्योंकी जिसका हाथ मेरे हाथ मे था उसने ये कहा था –“ आरंभ का अंत तुम पर निर्भर करता है “ । मैंने अब सपने को जीना शुरु कर दिया था और बस अब किसी नये आरंभ का दूर दूर तक कोई नामो निशान नही था । परंतु जिम्मेदारियो ने हमेशा रोडे अटकाये और बार बार जब मुझे लगा के बस अब मैंने अपने सपने को पुरा कर लिया है और ये तो अंत है तब –तब उन्होने मुझे ये अहसास दिलाया के – अंत ही आरंभ है । 

जब मैं जिंदगी के आखरी पडाव पर पहुचा और ना कुछ पाने की इच्छा थी ना कुछ खोने का डर तब जाकर मुझे अहसास हुआ के अंत तो है ही नही , बस निरंतर आगे बढते रहना है । जहा सफर खत्म होगा वहा बस एक पडाव का अंत होगा । सफर का अंत तो निर्धारित ही नही है । आखिर जब पडाव खत्म हुआ बस कुछ पल के बाद फिर से मै मॉ की गोद मे जब मे सिसकिया लेकर रो रहा था । मुझे लगा था के ये अंत है पर अंत ही आरंभ है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *