बर्फ में बर्फ कविता

तुमको पाने के रास्ते कई थे,
कौन सा चुनता, बस यही परेशानी थी।
या तो हाथ पकड़ लेता
और सीधा कह देता,
या दोस्त से 50 रुपये
उधार लेकर गुलदस्ता ले आता।
वैसे तुम्हें रबड़ी की चुस्की
बहुत पसंद थी,
पर तुम अक्सर गर्मियों में
चली जाती थी नानी के यहाँ।
तुम्हारी नानी का घर शिमला में था,
अब बर्फ में बर्फ कौन खाता है?
पर मेरे वहाँ आने में अभी 8 साल और हैं।
जब बड़े हो जाएंगे हम,
तब चलेंगे शिमला
तुम्हारी नानी से मिलने
और बर्फ में बर्फ खाने।
तुम बस ऐसी ही रहना,
मैं पता नहीं कैसा रहूँगा।
लड़के बड़े होने पर लड़कियों को
“चीज़” कहने लगते हैं।
कल पड़ोस वाले भैया
एक दीदी को “माल” भी कह रहे थे।
मैं कहीं उन जैसा हो जाऊँ,
तो मार देना एक थप्पड़
जोर से गाल पर मेरे,
जैसे उन दीदी ने भैया को मारा था।
उसके बाद जो भैया ने कहा,
उसे सुनकर समझने के लिए
मेरी उम्र बहुत छोटी है।
तुम जल्दी समझ जाओगी,
माँ कहती है—
लड़कियाँ जल्दी बड़ी हो जाती हैं।
तुम मुझसे पहले ये सब
समझ जाओगी।
और अगर समझ आए,
तो मुझे भी समझाना—
क्योंकि मुझे तुम्हारे साथ
बर्फ में बर्फ खाना है।
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