मैं आज फिर डाकिये को बेवजह डाँट रहा था, फिर पुचकार रहा था।सच तो ये है कि तूने आज भी मेरे खत का जवाब नहीं भेजा है।ना जाने तू किस बात से डर रही है? दुनिया से…?इस दुनिया से तो बिलकुल ना डरना।ये तो पहले से ही गरीबी-अमीरी, जात-पात, सच-झूठ…
मैं आज फिर डाकिये को बेवजह डाँट रहा था, फिर पुचकार रहा था।सच तो ये है कि तूने आज भी मेरे खत का जवाब नहीं भेजा है।ना जाने तू किस बात से डर रही है? दुनिया से…?इस दुनिया से तो बिलकुल ना डरना।ये तो पहले से ही गरीबी-अमीरी, जात-पात, सच-झूठ…