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2005, भिंडी की सब्ज़ी और धोनी (DHONI) की पहली यादगार पारी

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हम 2004 में अपने नये घर में शिफ्ट हुए थे और कुछ दिनों तक केबल का कनेक्शन भी नहीं लगा था। मालवा की चिलचिलाती गर्मी में दूरदर्शन ही एक सहारा था और जब क्रिकेट का मैच हो तो दूरदर्शन भी स्टार स्पोर्ट्स जैसा लगने लगता था। तब “फेयर एंड लवली प्रेसेण्ट्स फोर्थ अपांयर” के एक्सपर्ट कमेंट सुनकर लगता था कि बस, अब सचिन को संन्यास ले लेना चाहिए।

खैर, इस गर्मी में भी अगर टीवी पर India vs Pakistan का मैच आ जाए तो फिर ऐसा लगता था जन्नत और कहीं नहीं, यहीं है। वैसे भी 12वीं पास करके और IIT-JEE की स्क्रीनिंग देकर खाली बैठे थे।

India vs Pakistan सीरीज़ का ये दूसरा वनडे था। वैसे तो इससे पहले भी कई बार ये टकराव देखा था, लेकिन इस मैच में कुछ खास था। एक खिलाड़ी खेल रहा था, जिसके बारे में मैं अखबारों और कभी-कभार दूरदर्शन और आकाशवाणी की न्यूज़ में टटोलता रहता था।

Mahendra Singh Dhoni playing a pull shot during his 148-run knock against Pakistan in 2005 – Indian wicketkeeper-batsman in long hair

कुछ दोस्तों के यहाँ केबल था, वे बताते थे कि सबसे तेज़ चैनल पर उसकी खूब तारीफ हो रही है। मैं उस खिलाड़ी को खेलते हुए देखना चाहता था… क्योंकि जब से क्रिकेट देखा, तब से अब तक हर टीम के पास एक ऐसा विकेटकीपर था जो बल्लेबाज़ी भी शानदार करता था।

हम दोस्तों की उम्मीदें नयन मोंगिया, समीर दीघे, अजय रात्रा, दीप दास गुप्ता, विजय दाहिया, सबा करीम, एम.एस.के. प्रसाद जैसे कई नामों से जुड़ी रहीं – जिनके छोटे-मोटे योगदान को हम बड़ा मान लेते थे। लेकिन उम्मीदें एक-दो मैच या ज़्यादा से ज़्यादा एक सीरीज़ तक ही टिक पाती थीं।

इस बार उम्मीद थोड़ी लंबी थी – एक दोस्त ने India A के लिए खेले गए उस खिलाड़ी की किसी पारी की हाईलाइट्स देखी थी।

टॉस जीतकर जब इंडिया बैटिंग करने उतरी, तो मन कर रहा था कि जल्दी कोई आउट हो और वो खिलाड़ी क्रीज़ पर आए। सचिन जल्दी आउट हुए… हालाँकि सचिन का आउट होना दुखद था, पर उस खिलाड़ी को देखने के उत्साह ने उस दिन सचिन के आउट होने के ग़म को भी हल्का कर दिया। और फिर जो आया, वो मेरे लिए क्रिकेट का नया अध्याय था।

उधर भूख भी अपना काम कर रही थी। किचन में माँ भिंडी बना रही थीं – लेकिन इस बार आलू के साथ। ये कॉम्बिनेशन पहली बार खा रहा था… और माँ की हर नई रेसिपी की तरह, ये भी हिट ही थी।

बैठा टीवी के सामने… और फिर आया वो खिलाड़ी – लंबे बाल, लंबे शॉट्स और मैदान पर दबदबा। धीरे-धीरे जब उसने 50 रन पार किए, तो दिल को ठंडक मिली। फिर जैसे-जैसे उसने पाकिस्तान के गेंदबाज़ों के धागे खोलने शुरू किए, लगने लगा अब हमें भी हमारा गिली (Gilchrist) मिल गया है।

मैदान से लेकर घर तक, हर जगह एक ही नाम गूंज रहा था – धोनी-धोनी, धोनी-धोनी…

उस 148 रनों की पारी ने तय कर दिया था – अब जब भी इंडिया के पाँच विकेट गिरेंगे, टीवी बंद नहीं करना है।

उस सीरीज़ में पाकिस्तान ने भारत को 4-2 से हराया था, लेकिन आज भी वो हार नहीं खलती – क्योंकि उस सीरीज़ ने भारतीय क्रिकेट को एक हीरा दिया था।

साथ ही माँ के हाथों से बनी भिंडी-आलू की सब्ज़ी ने उस दिन को और भी यादगार बना दिया।

धोनी – एक नाम, एक भरोसा

अब इस बात को 15 साल से भी ज्यादा हो चुके हैं। धोनी अब रिटायर हो चुके हैं, CSK को फिर से कई बार चैंपियन बना चुके हैं, और भारतीय क्रिकेट को जो स्थिरता और आत्मविश्वास उन्होंने दिया, वो शायद ही कोई दे पाए।

  • 2007 का टी-20 वर्ल्ड कप,
  • 2011 का वनडे वर्ल्ड कप,
  • 2013 की चैंपियंस ट्रॉफी,
  • और IPL में Chennai Super Kings की कप्तानी –

हर एक जीत, हर एक मुस्कान… और हर वो पल जो उन्होंने बल्ले, ग्लव्स और दिमाग से रचा।

वैसे तो धोनी की कई पारियाँ और मैच हैं जो यादगार हैं… पर मेरे लिए सबसे खास वही दिन है – जब उन्होंने पहली बार खुद को दुनिया के सामने साबित किया… और माँ की भिंडी-आलू की सब्ज़ी ने उस पल को हमेशा के लिए मेरे दिल में टांक दिया।


👉 क्या आपकी भी धोनी से जुड़ी कोई पहली याद है? नीचे कमेंट में ज़रूर बताइए – क्योंकि फैंस की यादें ही तो असली इतिहास होती हैं।

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Malvinder singh Bali
Malvinder singh Bali
9 days ago

Subhanallah.Bahut Khoob
Mazaa AGAYA

Priyansha
Priyansha
9 days ago

Wah kya baat hai

Shivam Lilhori
Shivam Lilhori
9 days ago

Aap malwa ki garmi me to hum nawabon ke shahar ki paseejati garmi me dekh rhe the…

Yaad sirf ek match ki nahi hoti…
Uske aage peeche ki gai yaadgaari kaliyaan zehan me phir se khil jati hain

20 saal pehle ka wo ghar jahan hum 10 saalon se nahi gaye or na jaane kya kya…

Pratyush Vyas
Pratyush Vyas
9 days ago

Vo sirf 148 ki run ki pari nhi balki ek naye yug ki shuruaat thi jiski wajah se aj humare pass kafi ache wicketkeeper batsman hai.

Aur hume ek aisa captain bhi mila jisne khel ko dekhne ka nazariya hi badal dia.

Last edited 9 days ago by Pratyush Vyas
Dr. Gaurav Gupta
Dr. Gaurav Gupta
9 days ago

चिराग की कलम का बहुत ही शानदार लेख।
पुरानी यादें ताजा हो उठी। मानो पढ़ते पढ़ते पल ठहर सा गया हो।
बहुत खूब चिराग

Amandeep
Amandeep
8 days ago

The man the myth the legend 🙌

Hitesh Kag
Hitesh Kag
4 days ago

Woh bhi kya daur tha….